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शिवाजी महाराज: Shivaji Maharaj History, Biography & Shivaji Jayanti in Hindi
मराठा साम्राज्य के निर्माता और संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज Chhatrapati Shivaji Mahara जैसी महान हंसती के बारे में सभी ने सुना है। छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म सन 1630 में पुणे के शिवनेरी किले में हुआ था।
शिवाजी महाराज का जन्म कब हुआ था ?
हर साल 19 फरवरी को पूर्व भारत देश में उनका जन्मदिन शिवाजी जयंकी के रूप में मनाया जाता है। इस साल छत्रपति शिवाजी महाराज के जन्मदिन की 391 वीं सालगिरह है। शिवाजी महाराज का जन्म 19 February 1630 हुआ था।
हालांकि ज्यादातर लोगों को शिवाजी महाराज के बारे में ज्ञात है लेकिन फिर भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके कम में हमेशा यह जिज्ञासा रहती है की आखिर छत्रपति शिवाजी महाराज हैं कौन? शिवाजी जयंती क्यों मनाई जाती है?
तो आज हम आपके उन सभी प्रश्नों का उत्तर लेके आएं हैं जिनका सम्बंध छत्रपति शिवाजी महाराज से है। हम आपको इस लेख के जरिये बताएंगे कि आखिर छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने जीवन में ऐसे क्या काम किए थे जिनकी वजह से आज हर व्यक्ति उनका नाम आदर और सद्भाव के साथ लेता है।
History of Shivaji Maharaj: शिवाजी महाराज का इतिहास
नाम(Name)
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शिवाजी शहाजी भोसले (Shivaji Maharaj) |
जन्म (Birthday) | 19 February 1630 |
जन्मस्थळ (Birth Place) | शिवनेरी किल्ला (पुणे) (Shivneri Fort, Pune) |
राज्याभिषेक (Rajyabhishek) | 6 जुन 1674 रायगढ |
वडीलांचे नाम (Father Name) | शहाजीराजे मालोजी भोसले |
आईचे नाम (Mother Name) | जिजाबाई शहाजी भोसले |
शिवाजी महाराजांच्या पत्नींची नाम (Wife Name) | सईबाई निंबाळकर |
मुलांची नाम (Children Name) | संभाजी, राजाराम,सखुबाई, रानुबाई, राजकुंवरबाई, दिपाबाई, कमलाबाई, अंबिकाबाई. |
वजन (Weight) | महाराजांच्या वजना विषयी कुठलीही ठोस माहिती उपलब्ध नाही. (Not Mentioned) |
तलवारीचे नाम (Name of Sword) | भवानी तलवार (Bhavani Sword) |
तलवारीचे वजन (Weight of Sword) | जवळपास १.१ ते १.२ कि. (११०० ते १२०० ग्राम) |
घोड्याचे नाम (Name of Horse) | मोती, इंद्रायणी, विश्वास, रणबीर, गजरा, तुरंगी आणि कृष्णा |
श्वानाचे नाम (Name of Dog) | वाघ्या (Vaghya) |
धार्मिक गुरु (Religious Teacher) | समर्थ रामदास स्वामी (Samarth Ramdas Swami) |
मृत्यु (Death) | 3rd April 1680 |
मृत्यूस्थळ (Death Place) | किल्ले रायगड (Raigad Fort) |
Shivaji Maharaj History in Hindi | शिवाजी महाराज का इतिहास हिंदी में |
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कौन थे छत्रपति शिवाजी महाराज?
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म एक मराठा क़बीले में हुआ था जिनको भोंसले समाज के नाम से भी जाना जाता था। शिवाजी महाराज के पितामह अपने समय में अहमदनगर सल्तनत में एक जनरल के तौर पर काम करते थे। लोग उन्हें राजा कहकर पुकारा करते थे। शिवाजी के पितामह की हैसियत के अनुसार उनको रहने के लिए शिवनेरी का किला प्रदान किया गया था। शिवाजी का परिवार शिवनेरी किले में ही रहा लरत था। और छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म भी शिवनेरी किले में ही हुआ था।
शिवाजी के पिता का नाम साहजी भोंसले था तथा उनकी माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी का झुकाव अपनी माता के प्रति ज्यादा था। शिवाजी की माता जीजाबाई काफी पूजा अर्चना करने वाली महिला थीं। इसका असर शिवाजी के चरित्र पर भी पड़ा। अपनी माँ की छत्रछाया में रहते हुए शिवाजी को हर प्रकार का ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने जीवन के काफी शुरुआती समय में ही रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथों का पाठन कर लिया था। शिवाजी के अंदर बचपन से ही हिंदुत्व की भावना पनप रही थी। उन्होंने अपना लक्ष्य बना लिया था कि वो मुगल चंगुल से भारत को मुक्त कराएंगे।
शिवाजी को धार्मिक शिक्षा में काफी रुचि रहती थी। इसलिए उन्हें जब भी मौका मिलता था वो धार्मिल संतों के साथ जाकर धर्म का पाठ पढ़ लिया करते थे। शिवाजी जब छोटी उम्र के थे तभी उनके पिता साहजी ने दूसरी शादी कर ली। साहजी ने शिवाजी और उनकी मां जीजाबाई को शिवनेरी से पुणे स्थानांतरित कर दिया। पुणे में जीजाबाई और शिवाजी दोनों दादोजी कोंडदेव की देखरेख में रहने लगे। दादोजी कोंडदेव ने ही शिवाजी को शुरुआती शिक्षा प्रदान की। बचपन के दिनों में शिवाजी ने अपने दोस्तों के साथ पहाड़ों और भारत के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण किया और सैन्य शिक्षा प्रपात की।
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छत्रपति शिवाजी महाराज की शादी किसके साथ हुई?
जिस समय शिवाजी का जन्म हुआ था उस समय भारत में यह प्रथा थी कि हिन्दू साम्रज्य में शादी जल्दी कर दी जाती थी। उसी प्रथा की अनुसार शिवाजी का विवाह भी काफी कम उम्र में कर दिया गया। छत्रपति शिवाजी महाराज की शादी निम्बालकर परिवार से सम्बंध रखने वाली एक लड़की से हुई थी जिनका नाम साईबाई था। छत्रपति शिवाजी महाराज और साईबाई का विवाह सन 1640 में सम्पन्न हुआ था।
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शिवाजी महाराज के कितने पुत्र थे?
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बीजापुर में शिवाजी ने किस प्रकार संघर्ष किया?
15 वर्ष की उम्र में ही छत्रपति शिवाजी महाराज में पूरे भारतवर्ष को यह दिखा दिया था कि वो आगे चलके भारतीय इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय लिखने वाले हैं। सन 1645 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने तोरण किले के कमांडर इनायत खान को बहला फुसलाकर उनसे किले को अपने कब्जे में ले लिया। उसके बाद फ़िरंगोजी नरसाला की मदद से शिवाजी ने बीजापुर के गवर्नर को बहला फुसलाकर कोंडाणा के किले को भी अपने कब्जे में ले लिया।
इसी बीच शिवाजी के पिता शाहजी को 25 जुलाई 1648 में बीजापुर के नेता आदिलशाह के आदेश पर बन्दी बना लिया गया। उन्होंने फिर शाहजी की सामने शर्त रखी की उन्हें इसी शर्त पर रिहा किया जाएगा कि मराठा साम्रज्यछत्रपति शिवाजी को आदिलशाह के हवाले कर दे। लेकिन ऐसा मुमकिन न हो सका। सन 1649 में जिनजी ने आदिलशाह का स्थान ले लिया और फिर उसी के पश्चात शाहजी को रिहा कर दिया गया।
अपनी रिहाई के बाद, शाहजी सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्त हो गए, और 1664 के आसपास एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। अपने पिता की रिहाई के बाद, शिवाजी ने फिर से छापेमारी शुरू की, और 1656 में, विवादास्पद परिस्थितियों में, चंद्रापुर मोरे, बीजापुर के एक साथी मराठा सामंत को मार डाला। भोंसले और मोरे परिवारों के अलावा, सावंतवाड़ी के सावंत, मुधोल के घोरपड़े, फलटन के निम्बालकर, शिर्के, माने और मोहिते सहित कई लोगों ने बीजापुर के आदिलशाही को भी देशमुख अधिकारों के साथ सेवा दी। शिवाजी ने इन शक्तिशाली परिवारों को अपनी तरफ करने के लिए अलग अलग तरीकों को अपनाया।
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अफजल खान और छत्रपति शिवाजी महाराज की जंग किस कारण हई?
आदिल शाह को जब यह एह्साह हुआ कि शिवाजी उनकी पहुंच से दूर निकलते जा रहे हैं तो उसने उनको अपने शिकंजे में करने के लिए अलग अलग तरीके अपनाने शुरू कर दिए। 1657 की बात है जब आदिल शाह ने अफजल खान को छत्रपति शिवाजी महाराज को गिरफ्तार करने का आदेश देकर भेजा। अफजल खान एक जनरल के तौर पर आदिल शाह के लिए काम करता था।
हालांकि अफजल खान को भेजने से पहले ही आदिल शाह अलग अलग प्रकार से शिवाजी को चोट पहुंचाने का कार्य कर रहा था। बीजापुर की फौज ने आदिल शाह के आदेश पर तुलजी भवानी मन्दिर को नष्ट कर दिया। तुलजी भवानी मंदिर मराठाओं के लिए काफी मुख्य था और साथ ही साथ वह मंदिर शिवाजी महाराज के परिवार के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण था। भवानी मंदिर के अलावा बीजापुर की फौज ने विठोबा मंदिर को भी नष्ट कर दिया जोकि पंढरपुर में मौजूद था। विठोबा मंदिर का नष्ट हो जाने से हिन्दू समाज काफी आहत हुआ।
बीजापुरी सेनाओं के द्वारा किए गए आक्रमण के कारण, शिवाजी प्रतापगढ़ किले से पीछे हट गए। पीछे हटने के बाद शिवाजी के कई सहयोगियों ने उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए दबाव डाला। परंतु शिवाजी ने अपनी छमता पर भरोसा दिखाते हुए अपने सहयोगियों को समझाया कि डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। शिवाजी की घेराबंदी तोड़ने में असमर्थ बीजपुर की दो सेनाओं ने खुद को गतिरोध में पाया। बात करें अफजल खान की तो अफजल खान के पास एक शक्तिशाली घुड़सवार सेना थी, लेकिन घराबन्दी के उपकरण की कमी थी। घराबन्दी के उपकरण की कमी के कारण अफजल खान किले को जितने में असमर्थ था। दो महीने के बाद जब अफज़ल खान के सब्र का बांध टूटा तो उस ने शिवाजी को एक दूत भेजा। दूत ने शिवाजी को यह संदेश दिया कि अफलज खान शिवाजी से किले से बाहर पार्ले में अकेले मिलना चाहता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने यह समझौता स्वीकार कर लिया।
10 नवंबर 1659 को दोनों नेता शिवाजी और अफजल खान प्रतापगढ़ के किले के बाहर एक झोपड़ी में मिले। पहले से यह तय हुआ था कि दोनों सिर्फ एक तलवार के साथ आएंगे। लेकिन इसके बावजूद शिवाजी को लगा की अगर वह अफजल खान और भरोसा करते हैं तो यह बेवकूफी होगी। उन्हें अफजल खान को नियत पर संदेह था। इसलिए वह पूरी तैयारी के साथ आये थे।
Shivaji Maharaj History in Hindi: कुछ लोग जो इतिहास के जानकार है वो मानते हैं कि पहला हमला अफजल खान की तरफ से हुआ तो कुछ लोगों की सोच इसके बिल्कुल विपरीत है। उन लोगों का कहना है कि विश्वासघात छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया था। जब शिवाजी को लगा कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है तो उन्होंने संकेत देकर अपनी सेना को युद्ध करने का आदेश दिया। शिवाजी के आदेश के बाद उनकी सेना बीजापुरी सेना पर टूट पड़ी। और इतिहास इस बात का गवाह है कि उस युद्ध में बीजापुरी सेना काफी आसानी से परास्त हो गयी थी। बीजापुरी सेना के लगभग 3000 सैनिक उस युद्ध में मारे गए। अफजल खान के साथ मराठाओं ने उसके बेटों को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया।
जीत के बाद, प्रतापगढ़ के किले के नीचे शिवाजी द्वारा एक भव्य समीक्षा की गई। पकड़े गए शत्रु, अधिकारियों और पुरुषों, दोनों को मुक्त कर दिया गया और पैसे, भोजन और अन्य उपहारों के साथ उनके घरों में वापस भेज दिया गया। मराठों को भी उनकी वीरता के लिए उसी के अनुसार पुरस्कृत किया गया।
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पन्हाला किले की कहानी क्या है? किस प्रकार शिवाजी ने वहां से अदिल शाह की फौज को परास्त किया?
अफजल खान और उसकी बीजापुरी सेना को परास्त करने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने यह फैसला लिया कि वह अब कोंकड और कोल्हापुर की तरफ अपनी सेना के साथ मार्च करेंगे। इसके लिए शिवाजी ने 1659 में पन्हाला के किले पर कब्जा कर लिया। आदिल शाह की नजर अब भी शिवजी के ऊपर बनी हुई थी। उसने फिर से दो जनरल के साथ बीजापुरी सेना भेजी। इस बार बीजापुरी सेना की अगुवाई रुस्तम जमान और फ़ज़ल खान कर रहे थे। लेकिन इसके बाद भी आदिल शाह के हाँथ कुछ नहीं आया। शिवाजी की सेना ने एक बार फिर बीजापुरी सेना को परास्त कर दिया।
1660 में, आदिल शाह ने सिद्दी जौहर को शिवाजी की दक्षिणी सीमा पर हमला करने के लिए भेजा, जो मुगलों के साथ गठबंधन में थे जिन्होंने उत्तर से हमला करने की योजना बनाई थी। उस समय, शिवाजी अपनी सेनाओं के साथ पन्हाला किले में डेरा जमाए हुए थे। 1660 के मध्य में सिद्दी जौहर की सेना ने पन्हाला को घेर लिया, जिससे किले की आपूर्ति के मार्ग बंद हो गए। इसके बाद सिद्दी जौहर के ऊपर पन्हाला के किले से हमला किया गया जिससे कि उसकी सेना को काफी नुकसान सहन करना पड़ा।
लगातार पन्हाला के किले की तरफ से हो रही बमबारी का सामना करने के लिए सिद्दी जौहर ने अंग्रेजों से मदद मांगी। जब शिवाजी को इस बात का पता चला कि अंग्रेजी कारीगर सिद्दी जौहर की मदद कर रहे हैं तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि अंग्रेज उनके साथ विश्वासघात करेंगे। अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए शिवजी ने राजापुर के अंग्रेजी कारखाने को लूट लिया। महीनों की घराबन्दी के बाद आखिरकार शिवाजी ने सिद्दी खान से बातचीत करके मसला हल करने का फैसला लिया। 22 सितम्बर 1659 को दोनों ने बातचीत की और बातचीत का नतीजा यह हुआ कि शिवजी ने किले को सिद्दी जौहर को सौंप दिया और उसके बदले में उन्होंने विशालगढ़ के किले को वापस ले लिया। हालांकि 1673 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने पन्हाला के किले पर दोबारा कब्जा जमा लिया था।
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छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगलों के बीच की कहानी क्या है?
मुगल शाशकों और छत्रपति शिवाजी के बीच का संघर्ष सन 1657 में शुरू हुआ था। उससे पहले शिवजी ने मुगलों के साथ काफी तालमेल बना कर रखा था। लेकिन 1657 में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिसकी वजह से मुगल और मराठाओं में दूरियां आ गईं।
मुगलों के साथ शिवाजी का टकराव मार्च 1657 में शुरू हुआ। टकराव का कारण यह था कि शिवजी के अधिकारियों ने मुगल छेत्र में छापेमारीब की। शिवाजी के दो अधिकारियों ने अहमदनगर के पास मुगल क्षेत्र में छापा मारा। इसके बाद जुन्नार में छापे मारे गए, जिसमें शिवाजी 300,000 नगद और 200 घोड़ों को जब्त किया। औरंगजेब ने नसीरी खान को भेजकर छापेमारी का जवाब दिया। नसीरी खान की सेना में अहमदनगर में शिवाजी की सेना को हराया था। और मुगलों के खिलाफ शिवजी की यह पहली तकरार थी। साथ ही साथ शिवजी को यह आभास भी हो गया था कि मुगलों के साथ इनका संघर्ष काफी लंबा चलेगा।
लेकिन फिर कुछ समय बाद ही मुगल शाशक शाहजहाँ की तबियत बिगड़ गयी। और इसकी वजह दे औरंगजेब का ध्यान शिवजी के ऊपर से हटकर मुगल गद्दी की तरफ चला गया। उसी समय बारिश का मौसम भी शुरू हो गया था। बारिश का मौसम और मुगल गद्दी की चाह ने औरंगजेब को मजबूर कर दिया कि वो शिवाजी के साथ अपने संघर्ष को कुछ स्थगित करदे।
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छत्रपति शिवाजी महाराज ने किस प्रकार शाहिस्ता खान पर गुप्त हमला करके पुणे का किला हांसिल किया?
मुगल गद्दी पाने के बाद औरंगजेब अब और ज्यादा ताकतवर हो गया था। बीजपुर और मुगल के बीच काफी अच्छे सम्बन्ध थे। इसलिए बीजपुर की बड़ी बेगम के कहने पर औरंगजेब ने अपने मामा शाहिस्ता खान को 150000 सैनिकों के साथ पुणे के किले पर हमले के लिए रवाना कर दिया। इस हमले में शाहिस्ता खान की सहायता बीजपुर के सेना अध्यक्ष सिद्दी जौहर ने की। सिद्दी जौहर पहले भी बीजापुरी सेना के साथ शिवाजी के साथ युद्ध कर चुका था।
शाहिस्ता खान की सेना ने पुणे के किले पर कब्जा जमा लिया। साथ ही साथ उसने पुणे के पास मौजूद चाकन के किले को भी अपने कब्जे में ले लिया। शाहिस्ता खान ने अपने पास मौजूद हथियारों से युक्त सेना का फायदा उठाया और पूरे पुणे शहर पर कब्जा जमाने के साथ शिवाजी के निवासस्थान लाल महल को भी अपने कब्जे में ले लिया।
सन 1663 में अप्रैल के महीने में शिवाजी ने अपने कुछ विश्वासी सैनिकों के साथ पुणे के किले पर आश्चर्यजनक तरीके से हमला किया। हमला इतनी अच्छी रणनीति के साथ हुआ था कि शिवजी शाहिस्ता खान तक पहुंचने में सफल हो गए। हालांकि वो शाहिस्ता खान को बंदी ने बना सके। शाहिस्ता किसी प्रकार से वहां से अपनी जान बचाकर भाग गया। औरंगजेब को जब शाहिस्ता खान की इस हरकत के बारे में पता चला तब उन्होंने सजा के तौर पर उसका ट्रांसफर बंगाल में कर दिया।
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शिवाजी के द्वारा किया गया पुरंदर का समझौता क्या था?
शाइस्ता खान और सूरत पर हुए हमलों ने औरंगजेब को नाराज कर दिया। उन्होंने जवाब में शिवाजी को हराने के लिए लगभग 15,000 की संख्या में सेना के साथ राजपूत मिर्जा राजा जय सिंह को भेजा। 1665 के दौरान, जय सिंह की सेनाओं ने शिवाजी पर काफी दबाव बना लिया, उनकी घुड़सवार सेना ने देश की सीमा पर चढ़ाई की। मुगल कमांडर शिवाजी के कई प्रमुख कमांडरों और उनके कई घुड़सवारों को मुगल सेवा में शामिल करने में सफल रहा। 1665 के मध्य तक, पुरंदर के किले को पूरी तरह से घेर लिया गया। पुरंदर के किले पर कब्जा हो जाने के बाद शिवाजी को जय सिंह के साथ आने के लिए मजबूर होना पड़ा।
पुरंदर की संधि में, शिवाजी और जय सिंह के बीच 11 जून 1665 को बात हुई। शिवाजी ने अपने 23 किलों को छोड़ दिया, हालांकि उन्होंने खुद के लिए 12 किले सुरक्षित रखे।इसके अलावा उन्होंने मुगलों को 400,000 स्वर्ण सिक्के का मुआवजा दिया। शिवाजी मुगल साम्राज्य के जागीरदार बनने के लिए सहमत हुए। इसके साथ साथ उन्होंने 50000 घोड़ों के साथ अपने बेटे को भी भेजने का फैसला लिया।
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किस प्रकार औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज को कैद किया?
यह बात सन 1666 जब औरंगजेब ने शिवाजी के पास आगरा आने का बुलावा भेजा। शिवाजी महाराज अपने नौ वर्षीय पुत्र शम्भाजी के साथ आगरा के लिए रवाना हुए। शिवाजी को आगरा बुलाने के पीछे औरंगजेब के यह उद्देश्य था कि वो शिवाजी को अफगानिस्तान भेजना चाहते थे। औरंगजेब चाहते थे कि शिवाजी अफगानिस्तान में जाकर वहां पर मुगल साम्राज्य की ताकतों को और बढ़ाएं तथा सीमाओं को सुरक्षित रखें।
जब शिवाजी अपने पुत्र के साथ औरंगजेब के दरबार में पहुंचे तो उनको दरबारियों के साथ पीछे खड़ा कर दिया। इस बात से छत्रपति शिवाजी महाराज को काफी आघात लगा। उनको इस बात से बहुत कष्ट हुआ कि उनको मुगल दरबार में इस प्रकार लज्जा सहनी पड़ी।
शिवाजी को यह बर्दास्त नहीं हुआ और वो दरबार छोड़कर जाने लगे। उनकी इस हरकत से नाराज होकर औरंगजेब ने आगरा के कोतवाल फौलाद खान को आदेश दिया कि शिवाजी महाराज को नजरबंद कर लिया जाए।
उसके बाद औरंगजेब के दरबार में यह बहस चलने लगी कि शिवाजी को इस गुस्ताखी के लिए मार दिया जाए या फिर माफ कर दिया जाए। इसी बहस के बीच औरंगजेब ने शिवाजी के पास यह प्रस्ताव भेजा कि वह काबुल में जाकर मुगल सेना का निरीक्षण करें और साथ ही साथ सेना नेतृत्व करें। लेकिन शिवाजी ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि उनका किला उन्हें वापस दे दिया जाए और अपना किला वापस पाने के बाद वह मुगल शासक के मनसबदार बनकर रहेंगे।
औरंगजेब ने शिवाजी से कहा कि वो दोबारा मुगल दरबार में तभी आ सकेंगे जब वो अपने सारे किले मुगल शाशकों के हवाले कर देंगे। शिवाजी में इस बात से साफ इंकार कर दिया। आखिरकार किसी प्रकार से शिवाजी मुगल दरबार के सैनिकों को अपने झांसे में फंसा कर मुगल चंगुल से भाग निकले। औरंगजेब की काफी कोशिशों के बाद भी वो यह पता नही लगा सका कि आखिर किस प्रकार शिवाजी अपने पुत्र के साथ मुगल चंगुल से भाग निकले। कई लोगों का मानना है कि शिवाजी ने फूलों की टोकरी के सहारे मुगल चंगुल से निकलने की योजना बनाई थी।
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मुगलों और छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच किस प्रकार की संधि हुई थी?
शिवाजी के भागने के बाद औरंगजेब को काफी गुस्सा आया। और इसी कारण से मुगलों के साथ शिवाजी महाराज की शत्रुता बढ़ गई। मुगल सरदार जसवंत सिंह ने शिवाजी और औरंगजेब के बीच नए शांति प्रस्तावों के लिए मध्यस्थ के रूप में काम किया। 1666 और 1668 के बीच की अवधि के दौरान, औरंगजेब और शिवाजी दोनों ही शांति प्रस्ताव को मान गए। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की उपाधि से सम्मानित किया। शिवाजी के बड़े बेटे संभाजी को 5,000 मुगलों के साथ मुगल मंसबदार के रूप में नियुक्त किया गया। शिवाजी ने उस समय संभाजी को औरंगाबाद में मुगल वाइसराय, प्रिंस मुअज्जम के साथ सेवा करने के लिए सामान्य प्रतापराव गूजर के साथ भेजा। राजस्व संग्रह के लिए संभाजी को बेरार में क्षेत्र भी प्रदान किया गया। औरंगजेब ने शिवाजी को धोकेबाज आदिल शाह पर हमला करने की अनुमति दी।
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आखिर क्यों औरंगजेब और शिवाजी के बीच दोबारा दुश्मनी बढ़ गयी?
सन 1670 तक शिवाजी और मुगलों के बीच सम्बन्ध काफी अच्छा रहा लेकिन अच्छा कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिसकी वजह से औरंगजेब को शिवाजी के ऊपर शक होने लगा। 1670 कि बाद शिवाजी और मुअज़्ज़मा के बीच के काफी नजदीकियां बढ़ गई। मुअज़्ज़मा वो शख्स था जो औरंगजेब की गद्दी को पाना चाहता था। उस समय औरंगजेब की सेना अफगान में हो रहे युद्ध में काफी व्यक्त थी। बहुत से असंतुष्ट मुगल सैनिक जल्दी ही मराठा सेवा में शामिल हो गए। मुगलों ने भी शिवाजी से बरार की जागीर छीन ली ताकि कुछ साल पहले उन्हें उधार दिया गया पैसा वापस मिल जाए। इसके जवाब में, शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ एक आक्रामक अभियान शुरू किया और चार महीनों के अंतराल में उनके सामने आत्मसमर्पण करने वाले क्षेत्रों का एक बड़ा हिस्सा बरामद किया।
शिवाजी की मृत्यु कब और कैसे हई?
1970 में मुगलों के साथ दुश्मनी बढ़ने के बाद शिवाजी ने सूरत पर हमला करके उसको अपने हाँथ में ले लिया। उसके पश्चात उन्होंने उमरानी और नेसरी की जंग में भी फतह हांसिल की।
फिर वह दिन आया जिसका सभी को काफी बेशब्री से इंतजार था। शिवाजी को 6 जून 1674 को रायगढ़ किले में एक भव्य समारोह में मराठा स्वराज के राजा का ताज पहनाया गया था। हिंदू कैलेंडर में यह वर्ष 1596 में ज्येष्ठ महीने के पहले पखवाड़े के 13 वें दिन को माना जाता है। लगभग पचास हज़ार लोग समारोह के लिए रायगढ़ में एकत्रित हुए। शिवाजी को मिल रही इतनी इज्जत के वो पूरे हकदार थे।
मार्च 1680 में शिवाजी की तबियत काफी बिगड़ गयी। तमाम इलाज के बाउजूद उनकी तबियत में कोई सुधार नहीं था। तबियत खराब होने की वजह से Chhatrapati Shivaji Maharaj Death Anniversary: 3rd April 1680 किस शुरुआत में छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई।
Shivaji Maharaj Jayanti : क्यों मनाई जाती है शिवाजी जयंती?
शिवाजी जयंती 19 फरवरी को मनाई जाती है, शिवजी जयंती महान मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज को याद करने का एक अदभुत सयोंग है। हर साल उनके जन्मदिन को शिवाजी जयंती के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में शिवाजी जयंती को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है और इसी वजह से महाराष्ट्र में शिवाजी जयंती को सरकारी अवकाश रखा जाता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती या शिव जयंती की शुरुआत 1870 में महात्मा ज्योतिराव फुले ने की थी, जिन्होंने पुणे से लगभग 100 किलोमीटर दूर रायगढ़ में शिवाजी महाराज की समाधि की खोज की थी। समारोह पहले पुणे में आयोजित किए गए थे।
इस परंपरा का अनुसरण बाद में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने किया जिन्होंने अपने योगदानों को उजागर करके शिवाजी महाराज की छवि को लोकप्रिय बनाया।
आज के इस पोस्ट Shivaji Maharaj History in Hindi छत्रपति शिवाजी महाराज के जरिये हमने शिवाजी महाराज के बारे में सारी जानकारी दी। आशा करते हैं कि आपको हमारी ये पोस्ट शिवाजी इन हिंदी खूब पसन्द आयी होगी। ऐसे में आप इसे अपने दोस्तों तथा जानने वाले लोगो के साथ जरूर शेयर करें।
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