Connect with us
t20win7 ads

Blog

Parakram Diwas: पराक्रम दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

Parakram Diwas in Hindi

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती अर्थात् जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रुप में, मना रहा है और मोदी सरकार द्धारा घोषणा की गई है कि, अब से हर साल की 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रुप में, मनाया जायेगा जिससे पूरे राष्ट्र में, देश भक्ति व राष्ट्र-समर्पण की अलख को सतत व चिरकाल तक प्रज्ज्वलित किया जा सकें।

23 जनवरी, 1987 को कटक में, जन्में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (बांग्ला भाषा में – सुभाष चॉन्द्रो बोशु) एक प्रखर व कट्टर राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता प्रेमी और अंग्रेजी सरकार के प्रबल आलोचको में से एक थे जिन्होने भारतीय स्वतंत्रता के लिए तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’’ के राष्ट्रीय नारे का श्रीगणेश किया व 4 जुलाई, 1943 को रासबिहार बोस से आज़ाद हिंद फौज’’ की कमान अपने हाथो में लेते हुए इसके चीफ कमाण्डर की हैसियत से आज़ाद भारत की एक स्वतंत्र लेकिन अस्थायी सरकार का गठन किया किया जिसे कुल 9 देशो ने अर्थात् कोरिया, चीन, जर्मनी, जापान, इटली व आयरलैंड आदि देशो ने, आधिकारी मान्यता भी प्रदान की।

अंत, हम, अपने इस लेख में, अपने सभी पाठको, युवाओं व विद्यार्थियो को पराक्रम दिवस व इसके नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की पूरी जानकारी प्रदान करेंगे ताकि हमारे सभी युवा व विद्यार्थी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नक्शे कदम पर चलकर राष्ट्र विकास व सुरक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पण कर सकें।

पराक्रम दिवस क्या है?

23 जनवरी, 2021 को ‘पराक्रम दिवस’ के रुप में, पूरे भारतवर्ष में मनाया बल्कि चिरकाल तक 23 जनवरी कोपराक्रम दिवस’’ के रुप में, मनाने की आधिकारीक घोषणा कर दी है और साथ ही साथ भारत सरकार ने, मौजूदा आधुनिक असंवेदनशीलता के दौर में, सुभाष चन्द्र बोस की पराक्रम-प्रिय प्रसांगिकता को नई पहचान देते हुए पुन-जीवित व उजागर कर दिया है ताकि हमारे विद्यार्थी व युवा उनसे प्रेरणा व प्रोत्साहन ले सकें व खुद को राष्ट्र के प्रति समर्पित कर सकें।

पराक्रम दिवस कब और किसकी याद मे मनाया गया?

Parakram Divas हर साल 23 जनवरी को मनाया जाता है।

 “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’’

के प्रवक्ता अर्थात् अभूतपूर्व स्वतंत्रता प्रेमी, सेलानी और भारतीय आज़ादी के प्रबल दावेदार स्व. श्री. सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती को भारत सरकार ने, पराक्रम दिवस के तौर पर मनाया है और साथ ही साथ ये आधिकारीक घोषणा भी कर दी है कि, अब से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के पराक्रम और स्वतंत्रता प्रेम की अलख हर भारतवासी में, प्रज्जवलित करने के लिए हर साल की 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रुप में, मनाया जायेगा।

वहीं दूसरी और भारत के जन-नायक अर्थात् तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री. मोदी जी ने, नेताजी के पराक्रम को याद करते हुए और वर्तमान समय में, उनकी प्रसांगिकता को उजागर करते हुए “तेजपुर विश्वविघालय’’ के 18वें दीक्षांत समारोह में कहा कि, नेताजी ना केवल भारतीय स्वतंत्रता के प्रतीक है बल्कि साथ ही साथ एक प्रेरणास्रोत भी है जिनसे ना केवल हमें, राष्ट्र-प्रेम की प्रेरणा मिलती है बल्कि राष्ट्र-विकास व उन्नति के लिए खुद को पूर्ण समर्पण भाव से झोंग देने वाली शौर्यपूर्ण त्याग की शिक्षा भी प्राप्त होती है।

पराक्रम दिवस क्यों मनाया जाता है?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन को ‘Parakram Divas’ के रूप में 23 जनवरी को मनाया जाता है।

  • भारतीय रेलवे ने, नेताजी की 125वीं जयंती पर क्या घोषणा की?

नेताजी व उनके पराक्रम को हम, केवल उनकी जंयती पर याद ना करें बल्कि दैनिक जीवन में, उनकी शौर्यपूर्ण शिक्षाओ व पराक्रमी स्वभाव को अपनायें इसके लिए भारतीय रेलवे ने, नई व क्रान्तिकारी पहल कर दी है जिसके अनुसार भारतीय स्वतंत्रता की मूर्ति कहे जाने वाले हमारे स्व. श्री. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को ना केवल “23 जनवरी, पराक्रम दिवस’’ की सौगात मिली है बल्कि भारतीय रेलवे ने, भी नेताजी के पराक्रम को पुन-जीवित करने के लिए और पूरे भारतवर्ष को प्रेरित व प्रोत्साहित करने के लिए 154 साल पुरानी अर्थात् अंग्रेजी हुकुमत के समय से भारतीय पटरीयों पर सर-पट दौड़ती पहली व एकमात्र सुपरफास्ट ट्रेन अर्थात् कालका मेल’’ का नाम बदलकर नेताजी एक्सप्रेस’’ कर दिया है ताकि हम, अपने दैनिक ज़िन्दगी मे, नेताजी व उनकी पराक्रमी शिक्षाओ को जीवित करते हुए ना केवल उनसे प्रेरणा व प्रोत्साहन लें सकें बल्कि पूरे भारतवर्ष में, नेताजी व पराक्रम दिवस का प्रचार-प्रसार करेंगे।

  • पराक्रम दिवस किस स्वतंत्रता सेनानी को मिली नई पहचान?

हम, सभी भारतवासी जानते है कि, पराक्रम दिवस को भारतीय इतिहास मे, पहली बार बीते 23 जनवरी, 2021 को भारतीय स्वतंत्रता के प्रतीक कहे जाने वाले स्व. श्री. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती के रुप में, मनाया गया ताकि असंवेदनशीलता के इस कठिन दौर में, देश-प्रेम को लौ को प्रज्जवलित किया जा सकें।

इसलिए आज हमारे लिए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बारे में, ना केवल जानना बल्कि उनकी वास्तविक शिक्षाओं को ग्रहण करना अनिवार्य हो गया हैं और इसी अनिवार्यता की कसौटी व समय की मांग को पूरा करते हुए हम, अपने इस लेख में, आपको नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी कुछ मुख्य बातों तो बिंदुबद्ध तरीके से प्रस्तुत करना चाहते हैं जो कि, इस प्रकार से हैं –

Subhas Chandra Bose Biography in Hindi

क्या आप, सभी वास्तव में, नेताजी के बारे में, पूरी व सम्पूर्ण जानकारी रखते है यदि बिलकुल नहीं या फिर हल्की-फुल्की जानकारी रखते हैं तो हम, आपको बताना चाहते हैं कि, हमारे स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1987 को कटक के एक हिंदू कायस्थ परिवार में, हुआ था जो कि, उड़ीसा में, स्थित है।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का बांग्ला भाषा में, उच्चारण कुछ इस प्रकार होता था “सुभाष चॉन्द्रो बोशु ’’

  • सुभाष चन्द्र बोस के मातापिता कौन थे और कितनी थी उनकी संताने?

हम अपने पाठको, विद्यार्थियो व सुभाष चन्द्र बोस के अनुयायियों को बताना चाहते है कि, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के पिता का नाम “श्री. जानकीनाथ बोस’ था जो कि, एक प्रसिद्ध सरकारी वकील थे व माता का नाम “श्रीमति प्रभावती’’ था जिनकी कुल 14 संताने अर्थात् 6 बेटियां व 8 बेटे थे और हमारे स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस उनकी 9वीं संतान थी और 5वें बेटे थे।

  • कैसा रहा सुभाष चन्द्र बोस का शैक्षणिक सफर?

साल 1909 में, सुभाष चन्द्र बोस ने, प्रोटेस्टेण्ट स्कूल से अपनी प्राथमिक शिक्षा अर्जित की जिसके बाद साल 1909 मे, ही बोस ने, “रेवेनशा कॉलिजियेट’’ विघालय में, दाखिला लिया जिसके प्राधानाचार्य श्री. बेनीमाधव दास थे और कहा जाता है कि, इनका व इनके व्यक्तित्व का बोस पर एक गहरा व अमिट प्रभाव पड़ा था जिसका प्रमाण ये था कि, बोस ने, मात्र 15 साल की आयु मे ही “विवेकानंद साहित्य’’ का पूर्ण अध्ययन कर लिया था व बेनीमाधव दास के व्यक्तित्व के अन्य प्रभावो को आगे चलकर हमारे सुभाष चन्द्र बोस ने, खुद स्वीकार किया था। उनके शैक्षणिक सफर के परिचयात्मक बिंदु-

  • साल 1915 में, बोस ने, कठिन बीमारी के बावजूद इंटरमीडियेट की परीक्षा को द्धितीय श्रेणी के साथ पास किया ।
  • अगले साल अर्थात् साल 1916 में, जब बोस ने, बी.ए दर्शनशास्त्र ऑनर्स में, दाखिला लिया और इसी दौरान अध्यापको व शिक्षको के बीच हुये झगड़े की कमान बोस ने सम्हाली जिसके फलस्वरुप ना केवल उन्हें 1 साल के लिए कॉलेज से निकाला गया बल्कि परीक्षा देने पर भी पाबंदी लगा दी गई ।
  • बोस की बहुत इच्छा थी कि, वे 49वीं बंगाल रेजीमेंट में, भर्ती हो लेकिन आंखें होने की वजह से उनकी ये इच्छा पूरी ना हो सकी ।
  • लेकिन सेना में, भर्ती होने की ललक ने, बोस को ’’ टेरीटोरियल आर्मी ’’ की परीक्षा दी और सौभाग्य से फोर्ट विलियम सेनालय में, एक रंगरुट के तौर पर भर्ती पा गये,
  • साल 1919 उनकी शैक्षणिक सफलता के तौर पर महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इस साल बोस ने, कलकत्ता विश्वविघालय मे, दूसरे स्थान पर रहते हुए अपनी बी.ए ऑनर्स की शिक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की ।
  • बोस ने, आई.सी.एस परीक्षा देने या ना देने का फैसला लेने के लिए पिता श्री. जानकीनाथ बोस से 24 घंटो का समय मांगा था और अन्त में, परीक्षा देने का निर्णय लिया था और 15 सितम्बर, 1919 को इंगलैण्ड के लिए रवाना हुए और नियति के अनुसार साल 1920 में, पिता की इच्छा को पूरा करते हुए बोस ने, आई.सी.एस की परीक्षा को चौथे स्थान पर रहते हुए उत्तीर्ण किया और अन्त में, साल 1921 में, ट्राइपास ऑनर्स की परीक्षा पास करके डिग्री प्राप्त की और इसी डिग्री के साथ भारत लौट आये।
  • स्वतंत्रता सेनानी बनने की प्रेरणा बोस को कहां से मिली?

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को स्वतंत्रता सेनानी बनने व भारतीय आज़ादी के लिए खुद को झोंकने की पूरी प्रेरणा चित्तरंजन दास से मिली थी और उन्हीं के साथ उन्होंने काम करना शुरु कर दिया था।

असहयोग आंदोलन के दिनो में, बगांल में इस आंदोलन के नेतृत्व की पूरी जिम्मेदारी चित्तरंजन दास जी को मिली थी और इसी मौके को भुनाते हुए बोस में, भी खुद को पूरे समर्पण भाव से इस आंदोलन में, झौंक दिया था।

  • कितनी बार जेल गये थे बोस?

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अपने पूरे जीवनकाल मे, कुल 11 बार जेल गये थे अर्थात् कारावास की सजा पाये थे जिसके तहत 16 जुलाई, 1921 को पहली बार बोस को कुल 6 महिनो के लिए जेल अर्थात् कारावास की सजा दी गई थी और दूसरी बार बोस को म्यांमार के मांडले काराग्रह में, भेजा गया था क्योंकि उन्होने ज्वलंत क्रान्तिकारी श्री. गोपीनाथ साहा को फांसी की सजा दिये जाने पर अश्रूधार बहाये थे व उनके शव का पूरी रिति-रिवाज के अनुसार दाह-संस्कार किया था जिससे अंग्रेजी हुकुमतो को भी बोस के भीतर छुपे ज्वलंत क्रान्तिकारी की झलक मिल गई थी और दूसरी बार जेल जाने की मूल वजह भी यही थी।

  • यूरोप प्रवास बोस के लिए कितना जरुरी था?

बोस को साल 1932 में, पुन अल्मोड़ा के जल मे, रखा गया था जहां से उनकी तबीयत खराब होने पर बोस ने, यूरोप प्रवास के लिए अपनी रजामंदी दी थी जिसके सीधे-सीधे दो अर्थ थे अर्थात् अपनी खराब तबीयत को स्वस्थ और तंदुरुस्त करना और साथ ही साथ भारत की आज़ादी के लिए अन्तर्राष्ट्रीय नेताओं से मदद मांगना।

अपने इस दूसरे लक्ष्य की पूर्ति के लिए बोस ने, इटली के प्रमुख नेता “मुसोलिनी’’ से मुलाकात की, आयरलैंड के नेता “डी वलेरा’’ से भेंट की जिन्होंने बोस को भारत की आज़ादी में. मदद देने का आश्वासन दिया।

  • बोस से संबंधित एमिली शेंकल कौन थी?

हम, आपको बताना चाहते हैं कि, सुभाष चन्द्र बोस का एमिली शैंकल से गहरा और अटूट संबंध था क्योंकि अपने इलाज अर्थात् यूरोप प्रवास के दौरान उन्हें ऑस्ट्रिया जाना पड़ा था जहां पर उन्हें अपनी पुस्तक लिखने के लिए एक अंग्रेजी भाषा की टाइपिस्ट की जरुरत महसूस हुई थी जिसे पूरा करते हुए बोस के एक मित्र ने, एमिली शैंकल से बोस की मुलाकात करवाई थी और यही मुलाकात आगे चलकर उनके प्रेम-संबंध की गवाह बनी थी जो कि, साल 1942 में, रिश्ते में, बदल गई अर्थात् बोस ने, एमिली शैंकल से प्रेम-विवाह कर लिया था।

  • कांग्रेस के भीतर किसी पार्टी की स्थापना की थी बोस ने?

बोस कांग्रेस के भीतर ही अपनी एक पार्टी की स्थापना करना चाहते थे जिसके तहत बोस ने, 3 मई, 1939 को “फॉरवर्ड ब्लॉक’’ की स्थापना की थी लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ समय बाद बोस को ही कांग्रेस से निकाल दिया गया।

  • 16 जनवरी, 1941 का दिन बोस के लिए क्यूं खास है?

हम, आपको बता दें कि, सुभाष चन्द्र बोस के निवारक नजरबंदी के तहत नज़रबंद करके रखा गया था जिससे बचने के लिए व नज़रबंदी पलायन करने के लिए बोस ने, 16 जनवरी, 1941 के पूरे दिन की योजना बनाई थी जिसके अंतर्गत बोस ने 16 जनवरी, 1941 को एक पठान मोहम्मद जियाउद्दीन का बनावटी रुप धारण करते हुए अपने घर से निकल गये और निवारक नज़रबंदी को तोड़ते हुए बच निकलें।

  • कैसे हुई आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना हिटलर से मुलाकात?

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने, जर्मनी में, सबसे पहले स्वतंत्रता संग्राम का सफलतापूर्वक व सुगमतापूर्वक संचालन करने के लिए “आज़ाद हिंद रेडियो’’ की स्थापना की। भारत को अंग्रेजो से आज़ाद कराने की उनकी कोशिशें उन्हें 29 मई, 1942 को जर्मनी के चांसलर अर्थात् सुप्रीम नेता एडॉल्फ हिटलर तक ले आई लेकिन हिटलर की तरफ से बोस को आशाजनक जबाव या सहयोग की प्राप्ति नहीं हुई और बोस को खाली हाथो लौटना पड़ा।

  • क्या है बोस की वास्तविक मृत्यु की तस्वीर?

बोस ने, खुद को भारतीय आज़ादी के लिए अपने ही द्धारा निर्धारित मार्ग से समर्पित कर दिया था जिसके तहत बोस ने, द्धितीय विश्व युद्ध के बाद रुस से मदद मांगने की योजना बनाई थी और इसी योजना पर कार्य करते हुए बोस ने, 18 अगस्त, 1945 को मंचूरिया के लिए हवाई यात्रा शुरु की जिसके बाद वे लापता हो गये और इस प्रकार उनकी मृत्यु पर एक शाश्वत प्रश्न चिन्ह लग गया जो कि, आज तक बरकरार है।

उपरोक्त बिंदुओ की मदद से हमने, अपने पाठको व विद्यार्थियो को पराक्रम दिवस के नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की एक संतुलित तस्वीर प्रदान करने की कोशिश की ताकि हम और आप नेताजी के जीवन से परिचित हो पाये और उनके प्रेरणा लेकर खुद को राष्ट्र के प्रति समर्पित कर पायें।

  • क्या हैं नेताजी का प्रभाव उसकी प्रसांगिकता?

नेताजी का प्रभाव ना केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर पड़ा बल्कि वे समस्त भारतवर्ष के मानसिक व वैचारिक पटल पर सदा के लिए अंकित हो गया क्योंकि दिल्ली के लाल किले में, आज़ाद हिंद फौज पर मुकदमा चलाया गया जिसने ना केवल बोस की लोकप्रियता को सतत तौर पर स्थापित किया बल्कि इस मुकदमें के बाद बोस सही मायनो में, स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर उभरे जिसके परिणामस्वरुप माताओं ने,  अपने पुत्रो को ना केवल “सुभाष’’ नाम दिया बल्कि अपने –अपने घरो में, वीर शिवाजी व महाराणा प्रताप के साथ उनकी तस्वीरो को भी स्थापित किया।

बोस, भारतीय आज़ादी के अपने मौलिक लक्ष्य को आज़ाद हिंद फौज की मदद से पूरा तो नहीं कर पाये लेकिन इसी फौज ने, भारत के लिए स्वतंत्रता की राह का निर्माण किया क्योंकि कुछ ही दिनो बाद भारतीय नौसेना ने, विद्रोह किया जिससे अंग्रेजों को सीधा संकेत मिला कि, भारत को भारतीय सेना के बल पर कैद रखना अब संभव नहीं है और भारत को आज़ाद करना ही होगा। इस प्रकार, सिर्फ 30,000-35,000 की फौज अर्थात् आज़ाद हिंद फौज ने, स्वतंत्र भारत के भविष्य का निर्माण कर दिया।

जब हम, सुभाष चन्द्र बोस व उनके पराक्रम की प्रसांगिकता की बात करते है तो हम, आपको बताना चाहते हैं कि, सुभाष चन्द्र बोस व उनका पराक्रम ना केवल इतिहास के तत्कालीन दौर में प्रसांगिक था बल्कि आज के वर्तमान आधुनिक समय में भी उनकी प्रसांगिकता मजबूती से स्थापित है जिसका जीवित प्रमाण ये है कि, भारत सरकार ने, सुभाष चन्द्र बोस कि, 125वीं जयंती को ना केवल पराक्रम दिवस’’ के रुप में, मनाया है बल्कि आने वाली हर 23 जनवरी को “Parakram Diwas’’ के तौर पर मनाने का ऐलान किया है जिससे स्वत ही, सुभाष चन्द्र बोस की प्रसांगिकता उजागर हो जाती है। 

सारांश:-

अन्त, हमने अपने इस लेख में, अपने सभी भारतवासियों को  पराक्रम दिवस’’ की पूरी उपलब्ध जानकारी प्रदान की साथ ही साथ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सम्पूर्ण व्यक्तित्व की एक संतुलित रेखाचित्र को उकेरने का प्रयास किया है जिसमें देश-भक्ति व राष्ट्र-समर्पण के भावों व रंगो को प्रत्यक्ष तौर पर देखा जा सकता है जिससे ना केवल हमारे युवा राष्ट्र के प्रति खुद को समर्पित कर सकते हैं बल्कि भारत के गौरवपूर्ण भविष्य का निर्माण भी कर सकते हैं।

चलते-चलते आपको हमारा ये लेख कैसा लगा, इसमें और किन सुधारों की गुंजाइश है और साथ ही साथ अपने पंसदीदा व्यक्तित्व पर अगला लेख प्राप्त करने के लिए हमें कमैंट कीजिए, हमारे लेख को सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्स पर अपने जानने वालो के साथ शेयर कीजिए ताकि हम, इसी तरह के लेख आपके लिए लाते रहे जिनसे ना केवल आपको प्रेरणा मिलें बल्कि प्रोत्साहन भी मिलें।

Advertisement
2 Comments

2 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

TRENDING POSTS

Diwali In Hindi Diwali In Hindi
Festivals & Events7 months ago

Diwali In Hindi: दिवाली त्यौहार पर निबंध…!

दीवाली का पर्व हिन्दू धर्म के सबसे बड़े त्योहार के रूप में जाना जाता है। ये त्योहार जितना धर्म से...

Diwali Quotes In Hindi Diwali Quotes In Hindi
Festivals & Events7 months ago

Diwali Quotes in Hindi: दीवाली के उद्धरण – दीपावली कोट्स हिन्दी मे..!

दीवाली के पर्व पर हमें अपने अंदर की कमियों को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। हमे इस दिन अपनी...

Happy New Year In Hindi Happy New Year In Hindi
Festivals & Events7 months ago

Happy New Year In Hindi: नव वर्ष पर निबंध, शायरी, विशेष…!

धीरे-धीरे ये साल भी बीतने वाला है। हम सभी का सामना जल्द ही नए साल 2023 से होने वाला है। आने...

Chrismas Wishes Chrismas Wishes
Festivals & Events7 months ago

Merry Christmas Wishes in Hindi: मेरी क्रिसमस की शुभकामनाएं हिंदी में..!

क्रिसमस बच्चों का सबसे प्रिय पर्व माना गया है। माना जाता है, कि इस इस दिन धरती पर सांता क्लोज...

Happy Holi Status Image Happy Holi Status Image
Festivals & Events7 months ago

Happy Holi Shayari, Holi Images for Friends and Family: हैप्पी होली शायरी, दोस्तों और परिवार के लिए

इस अवसर के लिए कई मिठाइयां और अन्य स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं। लोग सुबह से ही अपने घरों...

New Year Wishes In Hindi New Year Wishes In Hindi
Festivals & Events7 months ago

New Year Wishes In Hindi: भेजें न्यू इयर विशेज़ हिंदी…!

हर नया साल हमारे लिए एक ऐसा मौका होता है जो कि हमें जीवन मे कुछ नया करने का मौका...

Friendship Day Quotes Friendship Day Quotes
Festivals & Events7 months ago

Best Friendship Day Quotes In Hindi: फ्रेंडशिप डे कोट्स हिन्दी मे..!

दोस्ती! भगवान ने हमें मां-बाप और फैमिली चुनने का तो अवसर नहीं दिया और इसका मतलब यह कतई नहीं कि...

Diwali Greetings In Hindi Diwali Greetings In Hindi
Festivals & Events7 months ago

Diwali Greetings In Hindi: दिवाली की शुभकामनाएँ हिंदी में..!

दीवाली बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। ये जीवन मे से दुख के अंधियारे को ख़त्म कर के...

Hanuman Jayanti Wishes Quotes in Hindi Hanuman Jayanti Wishes Quotes in Hindi
Festivals & Events7 months ago

Hanuman Jayanti Wishes & Quotes in Hindi: आओ जानें हनुमान जयंती बारे में..!

हिंदू धर्म में हनुमान जयंती का पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है और लोगों के लिए हनुमान जयंती का...

Hindi Diwali Wishes Image Hindi Diwali Wishes Image
Festivals & Events7 months ago

Diwali Wishes In Hindi: दिवाली की शुभकामनाएं संदेश…!

दीवाली प्रेम और सौहार्द का त्योहार है। ये बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। ये दुखों को हटाने...

Advertisement