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Happy Holi Shayari, Holi Images for Friends and Family: हैप्पी होली शायरी, दोस्तों और परिवार के लिए
इस अवसर के लिए कई मिठाइयां और अन्य स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं। लोग सुबह से ही अपने घरों से बाहर निकलने लगते हैं। वे अपने हाथों में रंगों के थैलियाँ ले जाते हैं और सभी के चेहरे पर सूखे पाउडर को लगाते हैं। मध्य सुबह तक, सभी चेहरे इतने चमकीले रंग के होते हैं कि करीबी दोस्तों को भी पहचानना मुश्किल होता है।
होली रंगों का त्यौहार है जो आम तौर पर मार्च में पूर्णिमा को आता है। यह प्यार और एकता का भी त्योहार है और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है। यह त्योहार उत्तर भारत में बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
होली को जीवंत रंगों के साथ मनाया जाता है – ये रंग वास्तव में खुशी के रंग, प्यार के रंग और उत्साह का रंग हैं, जो हमारे जीवन को हमारे दिलों के मूल में खुशियों से भर देते हैं। यह प्रत्येक के जीवन को उसके विभिन्न गुणों से सुशोभित करता है।
“ऐसे मनाना होली का त्यौहार, पिचकारी से बरसे सिर्फ प्यार, ये है मौका अपनों को गले लगाने का, तो गुलाल और रंग लेकर हो जाओ तैयार।” – हैप्पी होली
“रंगो से भरा रहे जीवन तुम्हारा, खुशियाँ बरसे तुम्हारे आँगन, इंद्रधनुष सी खुशियाँ आये, आओ मिलकर होली मनाये।” – हैप्पी होली
“तुम भी झूमो मस्ती में, हम भी झूमे मस्ती में, शोर हुआ सारी बस्ती में, झूमे सब होली की मस्ती में।” – हैप्पी होली
“शेर कभी छिपकर शिकार नहीं करते, बुजदिल कभी खुलकर वार नहीं करते, और हम वो है जो हैप्पी होली कहने के लिए, होली आने का इंतज़ार नहीं करते।” – हैप्पी होली
“राधा का रंग और कान्हा की पिचकारी, प्यार के रंग से रंग दो दुनिया सारी, ये रंग न जाने कोई जात न कोई बोली, मुबारक हो आपको रंगो भरी होली।” – हैप्पी होली
“सपनो की दुनिया और अपनों का प्यार
गालों पे गुलाल और पानी की बौछार,
सुख समृद्धि और सफलता का हार,
मुबारक हो आपको रंगो का त्यौहार।”
“मोहब्बत के रंग तुम पर बरसा देंगे आज, आपने प्यार की बौछार से तुम्हे भीगा देंगे आज, तुम पे बस निशान हमारे ही दिखेंगे, कुछ इस तरह रंग तुम्हे लगा देंगे आज।” – हैप्पी होली
“इन रंगो से भी सुन्दर हो ज़िन्दगी आपकी,
हमेशा महकती रहे यही दुआ हैं हमारी,
कभी न बिगड़ पाए ये रिश्तो के प्यार की होली
ए-मेरे यार आप सबको मुबारक हो ये होली।”
“निकल पड़ो गलियों में बना कर टोली, भीगा दो तुम आज हर लड़की की चोली, हँस दे अगर वो तो उसे बाहों में भर लो, नहीं तो निकल लो वहां से कहकर।” – हैप्पी होली
“होली के रंग बिखरेंगे, क्योंकि पिया के संग अब हम भी तो भीगेंगे, होली में इस बार और भी रंग होंगे, क्योंकि मेरे पिया मेरे संग होंगे।” – हैप्पी होली
“गुलाल का रंग, गुब्बारे की मार, सूरज की किरणे, खुशियों की बहार, चाँद की चांदनी, अपनों का प्यार, मुबारक हो आपको रंगो का त्यौहार।” – हैप्पी होली
“लाल हो या पीला, हरा हो या नीला, सूखा हो या गीला, एक बार रंग लग जाये, तो हो जाये रंगीला।” – हैप्पी होली
“रंगो की हो भरमार, ढेर सारी खुशियों से भरा हो आपका संसार, यही दुआ है हमारी भगवान से हर बार।” – हैप्पी होली
“आ तुझे भीगा दें जरा, तुझे प्यार के रंग लगा दें जरा, करीब आये तेरे रंग लगाने और किसी बहाने से सीने से लगा ले जरा।” – हैप्पी होली
“आज मुबारक कल मुबारक, होली का हर पल मुबारक, रंग बिरंगी होली में, हमारा भी एक रंग मुबारक।” – हैप्पी होली
“सभी रंगो का रास है होली, मन का उल्लास है होली, जीवन में खुशियाँ भर देती है, बस इसलिए ख़ास है होली।” – हैप्पी होली
“वृंदावन की सुगंध बरसाने की फुहार मुबारक हो आपको होली का त्यौहार।” –हैप्पी होली
होली का इतिहास:-
होली का इतिहास बहुत पौराणिक है, इसके आरंभ का जिक्र विष्णु पुराण मे लिखित रुप मे पाया जाता है| मगर किन्वदन्तिओ के रुप मे यह पुराणो से भी पहले से कहा और सुना जाता रहा है| यानी कहा जाय तो होली पुरावैदिक काल से ही मनाई जाती है, जब से आर्यो ने खेती करने का हुनर सीखा और बंजारा जीवन छोड़ एक जगह बसने लगे तब से होली को धार्मिक परंपरा से जोड़ दिया गया और यह और भी लोकप्रिय हो गया। अब सवाल यह है की जब यह इतना पुराना त्यौहार है, तो कोई लिखित जानकारी क्यों नहीं।
ऐसा है!… की ऋग्वेद की पूरावैदिक काल में कोई जानकारी आज भी उपलब्ध नहीं है। बाद में वेदव्यास ने वैदिक काल में इनके श्लोकों को पंक्तिबद्ध किया और काव्य की रचना की जिसे ऋग्वेद कहा गया। ऋग्वेद की रचना भी वैदिक काल में ही की गई मगर इसके श्लोकों को पूरावैदिक काल में भी उच्चारित किया जाता रहा था मगर. लिखित रूप में कोई जानकारी नहीं थी।
उस समय हिन्दू धर्म नहीं था। मात्र सनातन धर्म का ही नाम था। वेदों के बाद पुराणों की रचना की गई। पुराणों में विष्णु पूराण में और दशावतार में नरसिम्हा अवतार में होली का जिक्र मिलता है। वास्तव में यह एक फसल की कटाई का त्यौहार है। खाश कर गेहूं की फसल की कटाई का। वेदव्यास ने जब इसे धर्म से जोड़ा तो लोगों में उमंग और उल्लाश फ़ैल गया। किन्वदन्तिओ के अनुशार जब हिरण्यकश्यप ने ईश्वर के अस्तित्व को नकारना शुरू कर दिया और खुद को भगवान घोषित कर दिया तो सारी प्रजा में यह बात फ़ैल गई।
हिरण्यकश्यप बड़ा ही प्रतापी राजा था, मगर उसके प्रताप ने उसे घमंडी बना दिया था। देवताओं ने भी देखा की अगर इसका प्रताप ज्यादा फैलेगा तो ईश्वर का नाम फिर धरती पर या देव लोक में कौन लेगा? ऐसे में उसका घमंड तोड़ने के लिए भगवान ने प्रह्ललाद का जन्म हिरण्यकश्यप के घर में दिया। प्रह्ललाद की माता अब भी भगवान विष्णु की ही आराधना कर रही थी।
मगर अपने पति के डर से कुछ नहीं बोलती। प्रह्ललाद को भी उसने भगवान विष्णु की आराधना का संस्कार दिया। प्रह्ललाद भी भगवान विष्णु की आराधना करने लगा, यह बात जब हिरण्यकश्यप के कानो तक पहुंची तो वह आग बबूला हो उठा। जिस राज्य में प्रजा उसे भगवान मान रही थी, उसी राज्य के राजा का पुत्र विष्णु की आराधना करे? यह कैसे हो सकता था।
उसने प्रह्ललाद को पहले समझने की कोशिश की मगर परह्लाद का एक ही कहना था की घर-घर में बसने वाले भगवान के अस्तित्व को नाकारा नहीं जा सकता इसलिए चाहे जो हो वह एक ही मंत्र का उच्चारण करेगा “ॐ नमो भगवते बसहुदेवय नमः“ इस बात को सुन हिरण्य और भी आग बबूला हुआ। ऐसी औलाद पाने से अच्छा तो निरवंश ही रहना उससे बेहतर है।
प्रह्ललाद को उसने पहले पहाड़ से धकेल कर मारना चाहा मगर वह बच निकला, उसके बाद हाथी के पैरों तले कुचलवाना चाहा उसमे भी वह बच निकला। अंत में उसने उसे आग के हवाले करना चाहा मगर, उसे प्रह्ललाद के फिर बच निकलने का डर था। तब उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया जिसको ये आशीर्वाद था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती। चिता सजाई गई तय हुआ की प्रह्ललाद को उसकी बुआ चिता पर लेकर बैठेगी और प्रह्ललाद जल मरेगा, होलिका बच निकलेगी। ईश्वर को यह कुछ ज्यादा ही क्रूर और अत्याचार महसूस हुआ।
अतः प्रह्ललाद जल नहीं पाया बल्कि होलिका ही जल मरी। दूसरे दिन लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई और होलिका के चिता की राख से लोगों ने होली खेली।इसके पीछे एक ही कारण था की दुःख, बिषाद, तकलीफ हमेशा के लिए किसी की ज़िन्दगी में नहीं रहता न रहेगा। यह दुनियाँ परिवर्तनशील है। रात और दिन, सुख और दुःख, हर्ष और बिषाद जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिये है, जो हमेशा साथ-साथ चलते हैं। यह चक्र निरंतर चलता रहता है। इससे छुटकारा नहीं है। फिर लोगों का जीवन कैसा हो? यह बहुत ही अहम् प्रश्न था।
ऋषियों ने तब बताया की समय अगर बुरा है तो धैर्य रखो और उस वक्त ईश्वर का ध्यान करो, भला समय है तो भी ज्यादा खुश होने की आव्यशकता नहीं, उस वक्त को भी लोगों के साथ बाँट कर चलो। इस से वक्त एक समान बीतेगा और अंत समय में शरीर छोड़ने में मोह माया सामने नहीं आएगी।
होली की बुराई और समाधान
बुराई
कुछ लोगों के लिए होली कुछ अलग ही मायने रखती है। फूहड़पन, नशा, गंदी ओर भद्दी गलियों से भरे गाने और महिलाओं के प्रति अलग ही भाव रखने वाली होती है। शायद आने वाली पीढ़ी के लिए हम यही धरोहर के रूप मे दे पाएँगे। भारत की सांस्कृतिक धरोहर जो, पूरे संसार में एक मायने रखता है। जो आज धूमिल सा होने लगा है। कुछ लोग लज़्ज़ा ओर हया को भूल चुके हैं।
होली के त्यौहार में, बहुत से लोग बुरे होते हैं, उनके पास तरीका नहीं होता है। वे इस तरह से नशे में होली मनाते हैं, जैसे वे इस अवसर पर शराब पीते हैं। वे भद्दे व्यवहार करते हैं और अस्वच्छ और बुरे रंगों का प्रयोग करते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
समाधान
समाधान अगर चाहते हैं तो अपने आने वाले पीढ़ी को इसकी शिक्षा बचपन से ही देनी होगी। आधुनिकता के इस युग मे अपने परंपरा को बचाने की ज़िम्मेदारी अब खुद को उठानी होगी। अच्छे संस्कार का बीज़ारोपण खुद ही करना होगा। यह तभी होगा जब हमारे अंदर नैतिकता का संचार होगा। अन्यथा इन परंपरा को अब तक जो संसार के मात्रा 3% हिंदू मानते चले आ रहे है वह समाप्ति के कगार पर चला आएगा। यह इसलिए कह रहा हूँ की अब ऐसे लोग देश से उपेक्षित होना चाहिए और ऐसा कभी नहीं होना चाहिए।
होली मानने का उद्देश्ये
उत्सव मानाने का उद्देश्ये यह था की ऊंच नीच का भेदभाव छोड़ कर लोग मिलकर सामाजिक ढांचे को बनाये रखे। १२ संस्कार और जीवन के १६ कलाओं को बनाये रख कर देवत्व को प्राप्त कर सके। मगर अब यह मात्र सांकेतिक रह गया है। होली वास्तव में एह्शाश और उल्लाश का त्यौहार है।
होली से क्या शिक्षा मिलती है
होली हमें अपने बड़ों के प्रति सम्मान और छोटों के प्रति प्यार की भावना सिखाती है। जाती-पाती और धर्म के भेदभाव से ऊपर उठ कर इंसानियत की भाषा सिखाती है। यह तो प्रेम का सन्देश देता है। यानी एक इंसान का इंसान से कैसा नाता हो? भावना कैसी हो? उनके प्रति व्यवहार कैसा हो यह होली से बेहतर कोई नहीं सिखाता।
Final Words:
होली के दौरान, लोग अपने पुराने दुश्मनों को भी माफ कर देते हैं और दोस्त बनाते हैं। हर कोई इस त्योहार का आनंद लेता है, चाहे वह युवा हो या वृद्ध। लेकिन हमें केवल अच्छी गुणवत्ता वाले रंगों के साथ खेलने के लिए सावधान रहना चाहिए और किसी को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए। इस तरह इस त्योहार में सभी के पास अच्छा समय होगा।हमें सभ्य तरीके से होली मनानी चाहिए।
हमें महसूस करना चाहिए कि यह खुशी और दोस्ती का त्योहार है। हमें अपना आनंद दूसरों के साथ साझा करना चाहिए। हमें बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। त्योहार की वास्तविक भावना को बनाए रखा जाना चाहिए।
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