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Guru Gobind Singh Ji Biography In Hindi: गुरु गोबिंद सिंह जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय
हमारे देश भारत देश के इतिहास में बहुत से ऐसे योद्धा और शासक हुए है। जिन्होंने अपने राज्य और शासन की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को त्याग दिया। लेकिन आज हम आपको सिक्खों के दसवे गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी के बारे में बताने जा रहे है। जिन्होंने सत्य और लोगो के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों की जरा सी भी प्रवाह नही की थी। आज के आर्टिकल में हम सिक्ख धर्म के दसवे गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन के बारे में बताने जा रहे है।
“वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतेह”
जिन्हें भारत के इतिहास के सबसे बहादुर और सच्चे योद्धा का दर्जा प्राप्त है।आप गुरु गोविन्द सिंह जी के पराक्रम का अंदाजा इस बात से ही लगा सकते है , जब औरंगजेब ने अपने दस लाख सैनिको के साथ गुरु गोविन्द सिंह जी और उनके साथ 40 साथियो पर हमला कर दिया था और उन्हें चारो तरफ से घर लिया था।
लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी बहादुरी का सच्चा परिचय देते हुए हर नही मानी और मात्र 40 सिक्खों ने मिलकर औरंगजेब के दस लाख सैनिको को हरा दिया। इस बेहतरीन आर्टिकल में हम Guru Gobind Singh Ji की Biography In Hindi में जानेंगे और आपसे गुरु गोबिंद सिंह जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय भी कराएँगे।
1 | बचपन का नाम | गोबिंद राय |
2 | जन्म | 22 दिसंबर, साल 1966, पटना साहिब, भारत |
3 | माता पिता | श्री गुरु तेगबहादुर तथा माता गुजरी |
4 | उत्तराधिकारी गुरु | गुरु ग्रन्थ साहिब |
5 | पत्नियों के नाम | माता जीजो, माता सुंदरी, तथा माता साहिब |
6 | गुरूजी के बच्चो के नाम | चार साहिबजादे- जुझारू सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह, अजित सिंह थे। |
7 | गुरूजी के महान कार्य | खालसा पंथ की स्थापना, चंडी दी वार, जाप साहिब, बचित्तर नाटक, अकल उस्तात, सिख चोपाई ( रचनाए ) है। |
8 | प्रसिद्द नाम | सर्बास दानी, सिख समाज के दसवे गुरु, अपार साहसी, बाज न आने वाले |
9 | मृत्यु | गोविन्द सिंह जी की मृत्यु 7 अक्टूबर, 1708 को नांदेड़, महाराष्ट्र, भारत में हुए थी। |
Guru Gobind Singh ji का बचपन
हम आपको बता दे की गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर, 1666 में पटना के एक अहीर परिवार में हुआ था। गुरु गोविन्द सिंह जी के पिता सिक्खों के नौवे गुरु श्री गुरु तेगबहादुर जी थे तथा गुरु गोविन्द सिंह जी जी की माता जी का नाम माता गुजरी बाई था। जब गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म हुआ था, तब उनके पिता गुरु तेगबहादुर जी हमारे देश के असम क्षेत्र में उपदेश देने के लिए गये हुए थे। गुरु गोविन्द सिंह जी के बचपन का नाम गोविन्द राय था।
पटना में गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म जिस घर में हुआ था वर्तमान में हम उस जगह को श्री पटना साहिब के नाम से जानते है। वर्तमान में सिक्ख धर्म के लोगो के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने जन्मस्थान पटना में अपने जीवन के शुरूआती सिर्फ चार वर्ष ही बिताए थे। चलिए अब हम गुरु गोविन्द सिंह जी के आगे के जीवन के बारे में जानते है।
गुरु गोबिंद सिंह जी का शुरुआती जीवन
साल 1670 में गुरु गोबिंद सिंह जी का परिवार पटना को छोड़कर पंजाब आ गया था। मार्च के माह में गुरु गोविन्द सिंह जी सहित उनका परिवार हिमालय की शिवालिक पहाडियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर रहने लगा था। गुरु गोविन्द सिंह जी की शुरूआती शिक्षा यही से आरम्भ हुई थी। यहा उन्होंने फारसी भाषा के साथ साथ संस्कृत भाषा की भी शिक्षा प्राप्त की और इसी के साथ गुरु गोविन्द सिंह जी ने यही पर एक अच्छा योद्धा बनने के लिए सभी प्रकार का सैन्य कौशल और युद्ध कलाए सीखी थी। गुरु गोविन्द सिंह जी तथा उनका परिवार जिस चक्क नानकी नामक स्थान पर रहते थे।आज वर्तमान में उस जगह को आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है।
गुरु गोविन्द सिंह जी अपने शुरूआती जीवन में प्रतिदिन अपने रहवासी स्थान वर्तमाना के आनंदपुर साहिब में अध्यात्मिक ज्ञान के साथ साथ नैतिकता और भाईचारे से रहने का सन्देश दिया करते थे। जब गुरु गोविन्द सिंह जी आध्यात्मिक जाग्रति का सन्देश देते थे। वहा पर प्रत्येक धर्म और जाति के लोग उनका प्रवचन सुनने के लिए आया करते थे।लेकिन गुरु गोविन्द सिंह जी बिना भेदभाव के सभी को समानता, समरसता तथा आध्यात्मिकता का अलौकिक ज्ञान प्रदान करते थे। गुरु गोविन्द सिंह जी अपने शुरूआती जीवन से ही बड़े शालीन, शांतिप्रिय तथा सहनशील व्यक्ति थे। उस समय गुरु गोविन्द सिंह जी क्षमा तथा शांति की मूर्ति माने जाते थे।
गुरु गोविन्द सिंह जी का सिक्खों का दसवा गुरु बनना
उस समय की बात है जब हमारे देश में कश्मीरी पंडितो का जबरन धर्म परिवर्तन करते हुए उन्हें मुसलमान बनाया जा रहा था। इसी धर्म परिवर्तन के विरोध में सभी गुरु तेगबहादुर जी के सामने अपनी फरियाद लेकर आये थे। उन्होंने गुरु तेगबहादुर जी से कहा की “ उन्होंने कहा है की यदि कोई ऐसा महान और बहादुर व्यक्ति है, जो इस्लाम ( मुस्लिम धर्म ) स्वीकार नही करना चाहता है और सार्वजनिक रूप से अपने प्राणों का बलिदान देने के लिए तैयार हो।
तब हम आप सभी का धर्म परिवर्तन नही करेंगे “ जिस समय यह सभी घटनाये घटित हो रही थी उस समय गुरु गोविन्द सिंह जी केवल नौ साल के थे। लोगो फरियाद सुनते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी से कहा की भला आपसे बहादुर और महान व्यक्ति कौन है इस दुनिया में, जो समाज मे फैल रहे अत्याचार को रोक सके तथा समाज की भलाई के लिए अपना बलिदान दे सके।
इसके बाद कश्मीरी पंडितो को जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए तथा समाज की भलाई के लिए श्री गुरु तेगबहादुर जी ने इस्लाम धर्म नही कबूल करते हुए अपना बलिदान दे दिया। 11 नवम्बर, साल 1675 में औरंगजेब द्वारा दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से श्री गुरु तेगबहादुर जी का गला कटवा दिया गया था। जिसके बाद 29 मार्च, साल 1676 में बैशाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह जी सिक्खों के दसवे गुरु के रूप में घोषित किये गये थे। इस प्रकार से श्री गुरु गोविन्द सिंह जी को सिक्खों का दसवा गुरु बनाया गया था।
सिक्खों के दसवे गुरु बनने के बाद भी गुरु गोविन्द सिंह जी की शिक्षा निरंतर जारी रही और उन्होंने अपनी शिक्षा के अंतर्गत पढना – लिखना, घुड़सवारी तथा सैन्य कौशल सीखा था। गुरु गोविन्द सिंह जी ने उस समय साल 1684 में अपनी रचना ‘चंडी दी वार ‘ की रचना भी की थी। उसके बाद श्री गुरु गोबिंद सिंह जी साल 1685 तक यमुना नदी के किनारे स्थित पाओंटा नामक स्थान पर रहे थे।
गुरु गोबिंद सिंह जी का निजी जीवन
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की तीन पत्निया थी, गोविन्द सिंह जी की तीनो पत्नियों तथा उनसे हुए पुत्रो का वर्णन इस प्रकार से है-
- 21 जून, साल 1677 में गुरु गोविन्द सिंह जी का पहला विवाह मात्र 10 वर्ष की उम्र में माता जीजो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर स्थित बसंतगढ़ में हुआ था। गुरु गोविन्द सिंह जी को उनकी पहली पत्नी माता जीजो से 3 पुत्र हुए थे। जिनके नाम इस प्रकार से है- जुझारू सिंह, जोरावर सिंह, तथा फ़तेह सिंह थे।
- इसके पश्चात गुरु गोविन्द सिंह जी का दूसरा विवाह साल 4 अप्रैल,1684 में मात्र 17 वर्ष की उम्र में माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ था। इस विवाह से गोविन्द सिंह जी तथा माता सुंदरी को एक पुत्र हुआ था, जिनका नाम अजित सिंह था।
- इसके बाद गोविन्द सिंह जी का तीसरा विवाह 15 अप्रैल, साल 1700 में 33 वर्ष की उम्र में माता साहिब से हुआ था। भले ही माता साहिब से गोविन्द सिंह जी को को संतान प्राप्त नही हुई थी। लेकिन सिक्ख धर्म के इतिहास में माता साहिब से विवाह के बाद का दौर बहुत प्रभावशाली रहा था।
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना
सिक्ख धर्म के इतिहास में गोविन्द सिंह जी का नेतृत्व बहुत ही प्रभावशाली रहा है। यह सिर्फ गोविन्द सिंह जी के नेतृत्व था जो सिक्ख समुदाय में बहुत कुछ नया लेकर आया था, गोविन्द सिंह जी ने साल 1699 में बैसाखी के दिन पवित्र खालसा पंथ की स्थापना की।सिक्ख धर्म में तो बैसाखी के दिन का बहुत ही विशेष महत्त्व होता है।चलिए अब हम जानते है की खालसा पंथ की स्थापन के पीछे की सम्पुर्ण घटना क्या थी।
गोविन्द सिंह जी ने सिख समुदाय की एक सभा के दौरान उन्होंने सबके सामने पुछा की – ” कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है ? ” तब इस बात के जवाब में उसी समय एक स्वयंसेवक खड़ा हो गया और अपना बलिदान देने के लिए राजी हो गया था। गोविन्द सिंह जी उसे पास के तम्बू में लेकर गये और कुछ देर बाद खून लगी हुई तलवार के साथ वापस सभा में लौट आये। गुरु गोबिंद सिंह जी ने पुनः सभा में वही सवाल पूछा जो उन्होंने पहली बार पुछा था।
पहले की भांति ही इस बार भी एक व्यक्ति अपना बलिदान देने के लिए राजी हो गया था और गोविन्द सिंह जी उसे उसी तम्बू में लेकर गये और खून से लगी हुई तलवार के साथ वो इस बार भी वापस लौट आये थे। इसी प्रकार जब पांचवा स्वयंसेवक भी जब गोविन्द सिंह जी के उस तम्बू में में गया और कुछ समय के पश्चात गोविन्द सिंह जी उन पांचो जीवित स्वयंसेवको के साथ वापस लौटे।
इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन्हें पंज प्यारे अथवा पहले खालसा का नाम दिया था। उसके बाद गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक लोहे के कटोरे में पानी और चीनी मिलाकर अपनी दोधारी तलवार से उसे घोला तथा उस घोल को अमृत का नाम दिया था। गोविन्द सिंह जी ने खालसा पंथ में पांच कंकारो का महत्त्व समझाया और कहा- केश, कंघा, कड़ा, कृपाण, तथा कच्चेरा। इसके बाद उन्होंने बैसाखी के दिन खालसा पंथ जो की सिख धर्म के विधिवत दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है। उसका निर्माण किया था, सिख धर्म के लोगो के लिए बैसाखी का दिन साल के सबसे विशेष तथा महत्वपूर्ण दिनों में से एक माना जाता है।
गोविन्द सिंह जी की रचनाये
गोविन्द सिंह जी एक सीखो के दसवे गुरु होने के साथ ही साथ एक कौशल प्राप्त योद्धा तथा कवि भी थे, गोविन्द सिंह जी के द्वारा की गयी रचनाये इस प्रकार से है।
- जाप साहिब:- गोविन्द सिंह जी के द्वारा की गयी इस रचना में एक निरंकार के गुणवाचक नामो का संकलन है।
- अकाल साहिब:- गोविन्द सिंह जी के द्वारा की गयी इस रचना के द्वारा अकाल पुरख की अस्तुति तथा कर्म काण्ड पर भारी चोट की गयी है।
- बचित्तर नाटक:- गोविन्द सिंह जी ने अपनी इस रचना में गोबिंद सिंह की सवाई जीवनी तथा आत्मिक वंशावली से वर्णित रचना की है।
- चंडी चरित्र:- गोविन्द सिंह जी की गयी इस रचना में उन्होंने चंडी को औरत शरीर तथा मूर्ति के रूप में मानी जाने वाली मान्यताओ को तोडा है। गोविन्द सिंह जी ने अपनी इस रचना में चंडी को परमेश्वर की शक्ति तथा हुक्म के रूप में बताया है।गोविन्द सिंह जी की एक रचना मार्कंडेय पुराण पर भी आधारित है।
- शास्त्र नाम माला:- गोविन्द सिंह जी ने अपनी इस रचना में अस्त्र -शस्त्रों के रूप में गुरमत का विस्तृत वर्णन किया है।
- अथ पख्या चरित्र लिख्यते:- गोविन्द सिंह जी ने इस रचना में बुद्धियो के चाल चलन के उपर विभिन्न प्रकार की कहानियो का संग्रह प्रस्तुत किया है।
- जफरनामा:- इसमें गोविन्द सिंह जी ने मुगल शासक औरंगजेब के नाम पत्र लिखा था।
- खालसा महिमा:- गोविन्द सिंह जी ने अपनी इस रचना में खालसा पकी परिभाषा तथा खालसा पंथ के कृतित्ब के बारे में बताया है।
गुरु गोबिंद सिंह जी के द्वारा लड़े गये प्रमुख युद्ध
बताया जाता है की गुरु गोबिंद सिंह जी ने कुल चौदह युद्ध किये और लड़ाईयां लड़ी। लेकिन उनकी तथा उनकी लड़ाइयो की वजह से किसी भी सामान्य व्यक्ति को कोई भी दिक्कत नही हुई थी और न ही किसी पूजा स्थल के लोगो को बंदी बनाया गया और न ह उन्हें किसी प्रकार का नुकसान पहुचाया गया था।
- भंगानी का युद्ध: Battle of Bhangani ( 1688 )
- नादौन का युद्ध: Battle of Nadaun ( 1691 )
- गुलेर का युद्ध: Battle of Guler ( 1696 )
- आनंदपुर का पहला युद्ध युद्ध: Battle of Anandpur ( 1700 )
- आनंदपुर साहिब का दूसरा युद्ध Battle of Anandpur (1701 )
- निर्मोह्गढ़ का युद्ध: Battle of NirmohGarh ( 1702 )
- बसोली का युद्ध: Battle of Basauli ( 1702 )
- आनंदपुर का युद्ध: Battle of Anandpur ( 1704 )
- सरसा का युद्ध: Battle of Sarsa (1704 )
- चमकौर का युद्ध: Battle of Chamkaur ( 1704 )
- मुक्तसर का युद्ध: Battle of Muktsar ( 1705 )
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा यह लड़े गये कुछ प्रमुख युद्ध तथा लड़ाईया थी। इनमे गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पराक्रम तथा बहादुरी का अलग ही स्तर सभी को दिखाया है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने कभी भी अपने शत्रु को अपनी पीठ नही दिखाई थी।
गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु
औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात गुरु गोबिंद सिंह जी बहादुरशाह को बादशाह बनाने में सहायता की थी। गुरु गोबिंद सिंह जी तथा बहादुरशाह के सम्बन्ध अत्यंत अच्छे तथा मधुर थे, इन्ही संबंधो को देखकर सरहद का नवाब वाजित खां घबरा गया था। इसलिए उसने दो पठानों को गुरु गोबिंद सिंह जी के पीछे लगा दिया था और उन दोनों ने गुरु गोबिंद सिंह जी पर धोखे से वार कर दिया था। जिसके बाद गुरु गोबिंद सिंह जी 7 अक्टूबर, 1708 में नांदेड़ साहिब में पंचतत्व में विलीन हो गये थे।
निष्कर्ष:-
सिखों के दसवे गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी एक बहुत ही बहादुर यशश्वी तथा धर्मप्रिय शासक थे। उन्होंने अपने शौर्य तथा पराक्रम से मुगलों को भारत से पूरी तरह से खदेड़ दिया और साथ ही साथबैसाखी के पवित्र दिन पर सच्चाई तथा समानता से जुड़े खालसा पंथ की स्थापना भी की थी। हमें उम्मीद ही नही पूरा विश्वास भी है की आपको यह आर्टिकल जिसमे हमने Guru Gobind Singh Biographi In Hindi तथा गुरु गोबिंद सिंह जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय आपसे कराया है। आपको अवश्य ही पसंद आया है।
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